कुछ अपने अपने ना रहे
परायों का साथ निभाने चले है
दूसरों से क्या उम्मीद करे
जब अपने ही पराये बन चले है
कुछ
रिश्ते टूट रहे है
कुछ को
हमने तोड दिया
कुछ
खुशियाँ आँखों से छूट रही हैं
कुछ को
हमने छोड दिया
फनाह करना था खुद को कही
अब बली चढ रहे है कही
मंजिलों पे चलने का ख्वाब था
अब सपने ही बदल रहे हैं कही
आँखों
में आँसूओं के बादल हैं इतने
कि कभी
भी बरसने लग जाएँगे
आँसूओं
के साथ बह जाएँगे कुछ सपने
जो लौटकर
कभी ना आएँगे
लोग हैं हर जगह
यहाँ हर तरफ मेले हैं
काश कोई समझ भी लेता
इस भीड में हम अकेले हैं
-कायांप्रि
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